Daughter’s Right to Property – एक तलाकशुदा बेटी का दिव्यांग पिता के Property में कोई अधिकार नहीं होता है। यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट के द्वारा हाल ही में सुनाया गया है। दिल्ली हाई कोर्ट का कहना है कि अपने भरण पोषण के लिए तलाकशुदा बेटी अपने पति पर निर्भर होती है ना कि अपने पिता पर।
दूसरी तरफ कोर्ट ने कहा कि अगर बेटी विधवा या अविवाहित है तो ऐसी स्थिति में वह अपने पिता से संपत्ति की मांग कर सकती है। इससे कुछ समय पहले कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक याचिका में टिप्पणी की थी की “बहनों को परिवार का हिस्सा नहीं माना जाता है”। ऐसे में बहुत सारे सवाल उठकर आते हैं की बेटी किस स्थिति में अपने पिता से प्रॉपर्टी की मांग कर सकती है।
Daughter’s Right to Property
Name of Post | Daughter’s Right to Property |
कब बेटी का संपत्ति पर अधिकार होता है | अविवाहित और विधवा बेटी |
कब बेटी का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है | तलाकशुदा बेटी का कोई अधिकार नहीं होता है |
किसको शिकायत कर सकते है | पारिवारिक कोर्ट और हाई कोर्ट |
साल | 2023 |
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Daughter’s Right to Property
Delhi High Court में एक कैसे आता है जिसमें एक तलाकशुदा बेटी अपने दिव्यांग पिता से Property में अधिकतर मानती है। उस तलाकशुदा बेटी ने याचिका दायर की थी कि पिता की वारिस होने के बावजूद उसे प्रॉपर्टी में कोई अधिकार नहीं मिला है।
दिल्ली हाईकोर्ट में महिला के उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें उसने कहा था की वारिस होने के नाते उसे पिता की संपत्ति में अधिकार मिलना चाहिए। बता दे की महिला मामले को लेकर सबसे पहले पारिवारिक अदालत गई थी उसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट आई थी।
इसके अलावा महिला ने अपने माई और भाई पर खर्च दिए जाने के अनुरोध पर याचिका दायर की थी कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया। हाई कोर्ट के जज की बेंच ने बताया कि हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटिनेस एक्ट की धारा 21 के तहत आश्रित बेटी अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार मांग सकती है। लेकिन एक तलाकशुदा बेटी आश्रित शब्द को परिभाषित नहीं करती है।
महिला ने बताया कि उसके पति ने उसे 2001 में एक तरफ तलाक दे दिया था। उसने यह भी बताया कि वह संपत्ति में हिस्सा ना मांगे इसके लिए उसके मां और भाई ने उसे हर महीने 45000 रुपए देने का वादा किया था लेकिन 2014 के बाद उसे खर्च नहीं दिया गया है। इसके बाद कोर्ट में फैसला सुनाया कि चाहे परिस्थिति कितनी भी खराब क्यों ना हो एक तलाकशुदा बेटी को आश्रित शब्द से परिभाषित नहीं किया जा सकता है। इसलिए आज वह अपने दिव्यांग पिता के संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मांग सकती है।
हालांकि कोर्ट में साफ किया कि पारिवारिक अदालत के जरिए महिला को खर्चा मिलना चाहिए जो उसके ससुराल और पति के जरिए आना चाहिए।
एक शादीशुदा महिला का संपत्ति में कितना अधिकार होता है
इस पर भी कोर्ट (Right to Property) में अपना फैसला सुनाया है। एक शादीशुदा महिला को उसके ससुराल से नहीं निकाला जा सकता है। कोर्ट ने पूरी तरह से साफ किया है कि चाहे घर की स्थिति कितनी भी खराब क्यों ना हो जाए एक शादीशुदा महिला को उसके ससुराल से ससुराल वाले कभी बाहर नहीं निकाल सकते हैं।
हालांकि नियम यह भी है कि बहू अपने ससुर और सास को परेशान नहीं कर सकती है। इस वजह से ससुर और सास का संपत्ति में अधिकार होता है लेकिन बहू का संपत्ति में अधिकार नहीं होता है। बहू का संपत्ति में अधिकार न होने के बावजूद भी उसे ससुराल से अलग नहीं किया जा सकता है। बहू ससुराल की संपत्ति में तभी अपना अधिकार दिखा सकती है जब वह Property उसके पति के नाम हो जाती है।
बहने परिवार की सदस्य नहीं होती है!
कर्नाटक हाई कोर्ट (Right to Property) ने एक महिला की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की थी की बहन परिवार की सदस्य नहीं होती है। यह टिप्पणी हाईकोर्ट ने तब की थी जब एक बहन ने अपने भाई की मौत पर अनुकंपा का अधिकार जाहिर किया था।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह पूरी तरह से साफ किया की अनुकंपा पर मिलने वाले पैसे और अनुकंपा पर मिलने वाले नौकरी पर बहन का कोई अधिकार नहीं होता है। महिला का भाई बिजली विभाग में काम करता था और ड्यूटी पर ही उसकी मौत हो गई थी। इसके बाद नियम के अनुसार परिवार के एक सदस्य को उसके भाई की जगह पर नौकरी मिलनी चाहिए। लेकिन परिवार शब्द की परिभाषा में बहन का जिक्र नहीं होता है। सरकार ने पूरी तरह से साफ किया की अनुकंपा पर मिलने वाली नौकरी का अधिकार केवल उसकी बीवी या उसके बच्चों को हो सकता है इसके अलावा किसी को नहीं।
निष्कर्ष
इस लेख में Daughter’s Right to Property के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई है। इसे पढ़ कर आप आसानी से समझ गए होंगे की बेटी का अधिकार संपत्ति पर किस तरह से होता है। इसके अलावा एक बेटी कब संपत्ति पर अपना अधिकार जाहिर कर सकती है और कब वह संपत्ति पर अपना अधिकार जाहिर नहीं कर सकती है इस बात को अच्छे से समझाया गया है।